हिमाचल में 8 जुलाई से शुरू हुई बारिश जब 60 घंटे के बाद थमी तब तक इसके कहर ने प्रदेश का पूरा नक्शा ही बदल डाला था। पचहत्तर साल बाद हो या फिर 50 साल बाद मगर किसी को ठीक से याद नहीं है कि व्यास नदी का ऐसा रौद्र रूप उसने कभी देखा है। मनाली के बांहग से लेकर मंडी तक, पार्वती नदी में खीर गंगा से लेकर भूंतर संगम तक, सैंज नदी में सैंज से लेकर लारजी तक व्यास की किसी भी सहायक नदी ने अपने मन की कर ली। ऐसा लगा कि जैसे इन नदियों ने अपने साथ हुए जुल्म का बदला लेते हुए अपनी सीमा रेखाएं बांध दी हैं।
व्यास का यह रौद्र रूप जहां से भी गुजरा, वहां पडऩे वाले नालों पर भी झीलें बन गईं और पानी पीछे हटकर लोगों के घरों में जा घुसा। इन नदियों ने अपने होने का एहसास दिला दिया है और अपनी हदों को लेकर सबकुछ साफ कर दिया है। व्यास नदी ने आलीशान कार्यालयों में बैठकर परियोजनाओं के निर्माण की डीपीआर बनाने वालों को बता दिया है कि वह अपनी नीति और नीयत को बदल लें। पहाड़ को अपनी जागीर न समझें, कुदरत के स्वभाव के खिलाफ न जाएं। अभी भी समझ जाएं अन्यथा आने वाला समय इससे भी भयावह हो सकता है। इस विनाश के बाद स्वयं मनाली में अपने गूर के माध्यम से माता हिडिंबा ने चेतावनी जारी कर दी कि सुधर जाओ वरना वह दिन दूर नहीं जब मैं इस विपाशा (व्यास नदी) को अपने चरणों तक ले आऊंगी और तब कुछ नहीं बचेगा। माता हिडिंबा का स्थान नदी से बहुत ऊपर जंगल में है।
इस भीषण प्राकृतिक आपदा से जनता हिल गई है। सरकारें बेहाल हो गई हैं। नेताओं के दौरे हो रहे हैं। लोगों के पुनर्वास और विध्वंस के बाद पुनर्निर्माण के वादे हो रहे हैं। लेकिन जो तबाही मनाली से मंडी तक या यूं कहे हमीरपुर के नादौन तक हुई है, जिस तरह से बाढ़ में 40 पुल बह गए हैं, सैंकड़ों घर जमींदोज होकर व्यास की धारा के साथ बह गए हैं, असंख्य वाहन लापता हंै, सैंकड़ों लोग अभी भी गुम हैं, करीब एक लाख पर्यटकों को अभी तक कुल्लू-मनाली या दूसरी जगहों से निकाल कर सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया है। चालीस से ज्यादा लोगों के शव अब तक मिल चुके हैं। यह सब साक्षात दिखा रहा है कि तबाही का मंजर सामने खड़ा है। बेघर लोग अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। प्रदेश सरकार इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग कर रही है जबकि केंद्र सरकार हरसंभव मदद का भरोसा दे रही है।
प्रदेश और केंद्र में अलग-अलग दलों की सरकारें होने के कारण अब इसमें राजनीति भी होने लगी है, लोकसभा के आम चुनाव के लिए दस माह बचे हैं। ऐसे में सभी दलों और नेताओं ने अपनी सहानुभूति का पिटारा भी खोल दिया है। देखना होगा कि टूटी सड़कें कब वाहन चलाने लायक होती हैं। गिरे हुए पहाड़ों के मलबे को कब तक उठाया जाएगा। पानी के लिए तरस रहे लोगों की प्यास कब बुझेगी। कब बिजली पूरी तरह से बहाल होगी।
सवाल भी उठने लगे हैं कि हिमाचल में आई इस भीषण त्रासदी का जिम्मेवार कौन है? भले ही अभी सरकार और संगठन के लोग यही दिखाने का प्रयास कर रहे हैं कि यह समय किसी पर दोषारोपण करने का नहीं है। सबसे पहले लोगों को राहत देने, उनको बिजली-पानी-सड़क मुहैया करवाने, उनका पुनर्वास करने की ओर सारा ध्यान है। इसके बावजूद इस त्रासदी के लिए व्यास नदी किनारे अंधाधुंध निर्माण, फोरलेन और अन्य सड़कों से निकल रहे मलबे की अवैध डंपिंग, एनएचएआई की गलत डीपीआर और खनन को जिम्मेवार माना जा रहा है।
जिन लोगों ने तीन दिन तक इस विभीषिका को देखा है, जिन्होंने मंडी के व्यास नदी किनारे सुकेती के संगम पर बने पांच सौ साल पुराने पंचबख्तर मंदिर के ऊपर से होकर नदी को गुजरते देखा है, कई पुलों को तिनके तरह नदी में समाते पाया है, वाहनों को माचिस की डिब्बी की तरह नदी में तैरते देखा है, कई कई मंजिल घरों को पल में जमींदोज होते साक्षात देखा, लोगों के घरों में पानी घुसा और जब उतरा तो मलबे के अलावा और कुछ नहीं था, वे डंके की चोट पर कह रहे हैं कि यह सब अवैध निर्माण और मलबे की गलत डंपिंग से हुआ है। यह मलबा लकड़ी और पत्थरों के साथ बहा है और यही पुलों को बहा ले जाने का असली कारण बना है।
ऐसे में क्या प्रदेश सरकार एनएचएआई के लिए कोई गाइडलाइन तय करेगी? क्या प्रदेश सरकार पहाड़ों के लिए अपनी कोई नीति बनाएगी? एनएचएआई इस समय प्रदेश में कई फोरलेन सड़कों का निर्माण कर रही है। इसके लिए अंधाधुंध खनन हो रहा है। क्या अवैज्ञानिक खनन, बेतरह ब्लास्टिंग और गलत निर्माण को लेकर कोई नकेल कसी जाएगी? बहरहाल, यह सबक लेने का वक्तहै और यदि अब भी न चेते तो शायद कभी नहीं चेत पाएंगे। यूं तो इसके लिए प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर होने चाहिए, क्योंकि अगर पहाड़ सुरक्षित रहेंगे तभी मैदान भी बचेंगे। हिमाचल की नदियों के पानी ने पंजाब, हरियाणा, दिल्ली तक कहर बरपाया है। ऐसे में यह मसला अकेले हिमाचल का नहीं है बल्कि पूरे देश का है। सबको मिलकर इसपर सोचना चाहिए। हिमालयाई क्षेत्र के लिए विकास की अलग नीति होनी चाहिए।
बीरबल शर्मा
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