रूस से भारत की नजदीकियां बरकरार

विशेष प्रतिनिधि 

रूस से भारत की नजदीकियां बरकरार


केंद्र की मोदी सरकार ने हाल के महीनों में रूस से तेल की बड़े पैमाने पर खरीद की है। इसके बावजूद सरकार ने अमेरिका के साथ रिश्तों को खराब नहीं होने दिया है। भारत ने बीच का रास्ता निकाल कर खुद को तटस्थ दिखाने की कोशिश की है। यहां तक की बेहद चतुराई से यूक्रेन पर रूस के हमले के खिलाफ किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रस्ताव का समर्थन न करके भी यह कहा कि भारत युद्ध के समर्थन में नहीं है। इस बार प्रधानमंत्री मोदी जून में जब अमेरिका गए तो वहां उनका भव्य स्वागत किया गया। किसी भारतीय प्रधानमंत्री को पहली बार व्हाइट हाउस में डिन्नर दिया गया। भले ही राष्ट्रपति जो बाइडेन मोदी को लेने एयरपोर्ट नहीं पहुंचे, लेकिन अन्य मंचों पर मोदी को काफी तरजीह दी गई।
मोदी के हाल के अमेरिकी दौरे में अमेरिका के नेतृत्व ने दायरे से बाहर जाकर भारत के साथ रिश्तों को बहुत बेहतर दिखाने की कोशिश की। लेकिन इसका रूस के साथ भारत के रिश्तों पर इसका असर नहीं पड़ा है। इसका सबसे बड़ा सुबूत यह है कि जून में रूस से भारत का तेल आयात रिकॉर्ड 2.2 मिलियन बैरेल प्रतिदिन के स्तर पर पहुंच गया। इसके साथ ही रूस की दिग्गज ऊर्जा कंपनी रोसनेफ्ट ने जुलाई में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के एक पूर्व भारतीय निदेशक को अपने बोर्ड में शामिल किया है। भले ही मोदी के दौरे में  अमेरिका में काफी तामझाम दिखा हो और भारत के युवा प्रोफेशनल्स का अमेरिका के प्रति ज्यादा आकर्षण हो, लेकिन एक सच यह भी है कि कई अन्य देशों की तरह भारत में भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो मानते हैं कि अमेरिका बहुत भरोसेमंद नहीं है, क्योंकि उसके लिए सिर्फ  अपने व्यापारिक हित सर्वोपरि होते हैं।
अमेरिका ने मोदी के दौरे के वक्त जिन 30 एमक्यू-9बी प्रीडेटर ड्रोन की डील भारत से की है, वैसे ही ड्रोन उसने युद्ध के दौरान  यूक्रे न को भी दिए हैं, हालांकि उनकी क्षमता पर गंभीर सवाल उठे हैं। भारत में विपक्ष मोदी सरकार पर 31 ड्रोन की डील में भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहा है। यह सौदा करीब 25,000 करोड़ रुपये का है। भारत ने यह ड्रोन सीमा पर चीन के लगातार बढ़ती आक्रमकता का मुकाबला करने के लिए खरीदे हैं। कुछ रक्षा जानकारों का कहना है कि भारत को जो ड्रोन दिए गए हैं वे तकनीकी  रूप से आधुनिकतम नहीं हैं। हालांकि भारत सरकार ऐसी बातों को बेबुनियाद करार दे रही है।  
सियासी गलियारों में आमतौर पर ऐसी बातें सुनने को मिल रही हैं कि भारत को रूस से दूर करने के लिए और चीन से अपनी दुश्मनी के चलते अमेरिका भारत से निकटता दिखा रहा है। इसके बावजूद हकीकत यह है कि रूस के साथ भारत के संबंध पहले की तरह प्रगाढ़ हैं। अमेरिका से लौटते ही प्रधानमंत्री मोदी ने फोन करके रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात की। भारत के पूर्व विदेश सचिव शशांक को उद्धत करते हुए रूस की समाचार एजंसी स्पूतनिक ने एक रपट में कहा है कि अमेरिका भारत-रूस के संबंधों को रोकने में नाकाम  रहा है।
इस रपट के मुताबिक पूर्व विदेश सचिव शशांक ने कहा कि नई दिल्ली मास्को के साथ रिश्तों को महत्त्व देती है। शशांक ने कहा कि अमेरिका भारत को रूस के साथ उसकी दोस्ती और आर्थिक सहयोग से दूर करने में विफल रहा है। दोनों देशों के बीच प्रौद्योगिकी हस्तांतरण जारी है। शशांक ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत अभियान को आगे चलाने के लिए भारत रूस से आपूर्ति शृंखला पर काम कर रहा है। रूस और भारत के बीच सहयोग केवल रक्षा और प्राकृतिक संसाधनों के क्षेत्र तक सीमित नहीं होना चाहिए।
शशांक ने यह भी कहा कि रूस बहुत सारे संसाधनों को नियंत्रित करता है और रक्षा क्षेत्र में एक लीडर है। अन्य क्षेत्रों में भी रूस भारत के साथ सहयोग कर सकता है। शशांक ने कहा कि अमेरिकी लोगों को मालूम है कि भारतीय पेशेवर कार्य बल को सभी अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियों द्वारा महत्त्व दिया जाता है, इसलिए वे इस स्थिति का प्रयोग करने की कोशिश कर रहे हैं। हाल ही में भारत में अमेरिकी राजदूत ने कहा कि इस साल अमेरिका लगभग दस लाख भारतीयों को वीजा देगा। अगर रूस कुछ ऐसा करे, तो यह भी अच्छा होगा।
पूर्व विदेश सचिव ने कहा कि चूंकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन विचारों का आदान-प्रदान जारी रखे हुए हैं, लिहाजा साफ है कि भारत और रूस दोनों अपनी साझेदारी को बहुत महत्त्व देते हैं। स्पूतनिक न्यूज के मुताबिक शशांक ने यह भी कहा कि हालांकि भारत अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के साथ सहयोग बढ़ा रहा है फिर भी भारत के लिए रूस के साथ विशेष रिश्ते बिलकुल महत्त्वपूर्ण हैं।
स्पूतनिक न्यूज की रपट के मुताबिक भारत में रूसी तेल का आयात जून महीने में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है। उद्योग के आंकड़ों से पता चलता है कि अब रूस से आयात सऊदी अरब और इराक से सामूहिक रूप से खरीदे गए तेल के आंकड़े को भी पार कर गया है। एनालिटिक्स फर्म केप्लर में क्रूड विश्लेषण के प्रमुख विक्टर कटोना को उद्धृत करते हुए उसने कहा कि जून में तेल आयात की दैनिक मात्रा बढ़कर 2.2 मिलियन बैरल प्रतिदिन हो गई, जो लगातार 10वें महीने बढ़ रही है। रपट के अनुसार भारत के स्वामित्व वाली इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन पिछले दो महीनों में रूसी कच्चे तेल की सबसे बड़ी खरीदार रही है, इसके बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड है।
यही नहीं हाल ही में रूसी ऊर्जा दिग्गज कंपनी रोसनेफ्ट ने इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) के एक पूर्व निदेशक को अपने बोर्ड में नियुक्त किया है। इससे संकेत मिलता है कि वह भारत के साथ व्यापार संबंधों को बढ़ावा देने पर विचार कर रही है। रूसी फर्म के एक बयान के अनुसार, जीके सतीश 2021 में आईओसी में व्यवसाय विकास के निदेशक के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे, वे रोसनेफ्ट के मजबूत निदेशक मंडल में नियुक्त तीन नए चेहरों में से एक हैं। उनकी पेट्रोलियम उत्पाद विपणन, पेट्रोकेमिकल्स, एलएनजी और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में विशेषज्ञता है। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि व्लादिमीर पुतिन के भरोसेमंद इगोर आई सेचिन रोसनेफ्ट के सीईओ और प्रबंधन बोर्ड के अध्यक्ष हैं।
बता दें रोसनेफ्ट की तेल और गैस क्षेत्रों में जीके सतीश की पूर्व कंपनी के साथ रूस में साझेदारी है। रोसनेफ्ट आईओसी और अन्य भारतीय कंपनियों को कच्चा तेल भी बेचती है। हाल के महीनों में इसने गुजरात रिफाइनर्स को नेफ्था भेजना शुरू कर दिया है। ऐसे में सतीश की नियुक्ति इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि सतीश के पास भारतीय तेल और गैस बाजार की गहरी जानकारी है। रोसनेफ्ट अब तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की बिक्री सहित भारतीय कंपनियों के साथ अधिक सौदों पर दिलचस्पी दिखा रही है। सितंबर, 2016 से आईओसी बोर्ड में अपने कार्यकाल के दौरान, सतीश इंडियन ऑयल अदानी गैस प्राइवेट लिमिटेड के अध्यक्ष भी थे। रोसनेफ्ट नायरा एनर्जी का भी मेजोरिटी ओनर है, जो गुजरात के वाडिनार में 20 मिलियन टन प्रति वर्ष की रिफाइनरी संचालित करता है और देश में 6,300 से अधिक पेट्रोल पंपों का मालिक है। 
बेशक भारत के लोग अपने बच्चों को करिअर के लिए अमेरिका भेजने का सपना देखते हों, सच यह भी है कि वह रूस को भारत के दोस्त के रूप में अमेरिका से बेहतर मानते हैं। हाल के सालोंं, खासकर यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका ने भारत को रूस से दूर करने की काफी कोशिश की है। लेकिन बाइडन प्रशासन इसमें सफल नहीं हुआ है। भारत ने 'एक के लाभ से दूसरे का नुकसान नहींÓ की नीति से काम लिया है। अमेरिका ने नई रक्षा तकनीक भारत को देने की रणनीति अपनाकर ऐसा करने की कोशिश की है। अमेरिका और भारत रक्षा उद्योगों को नीतिगत दिशा प्रदान करने और नए रक्षा औद्योगिक सुरक्षा रोडमैप पर सहमत हुए हैं, लेकिन भारत ने ऐसा रूस से रिश्तों की कीमत पर नहीं।
उल्लेखनीय है कि भारते के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के समय भारत और रूस के बीच रक्षा साझेदारी का जो अध्याय शुरू हुआ था, वह नरेंद्र मोदी काल तक यथावत चल रहा है।  साल 1950 के बाद तत्कालीन सोवियत संघ ने भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड और ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन जैसी सरकारी कंपनियों की स्थापना में समर्थन और मदद दोनों दिए। यहां तक कि जब अमेरिका और उसके सहयोगियों ने जब परमाणु और अंतरिक्ष क्षमताओं को पंख देने की भारत की कोशिशों के चलते उस पर प्रतिबंध लगा दिए और अपने दरवाजे भारत के लिए बंद कर दिए थे तब भी यह रूस ही था, जिसने भारत की इन क्षमताओं को शुरू करने में मदद की। अगस्त, 1971 में भारत और सोवियत संधि पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद सोवियत संघ ने पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान भारत का पक्ष लिया।
भारत को सोवियत संघ से ही 1960 के दशक की शुरुआत में मिग-21 लड़ाकू विमान मिले और सैन्य प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण भी हुआ। ब्रह्मोस क्रूज मिसाइलों के साझे उत्पादन से लेकर टी-90 टैंकों के लाइसेंस प्राप्त उत्पादन तक रूस ने ही मदद की। यही नहीं भारत का विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य, परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत, कई गाइडेड मिसाइल विध्वंसक और हाल में खरीदा गया  एस-400 मिसाइल सिस्टम रूस-भारत रक्षा सहयोग का पुख्ता प्रमाण है।
दिसंबर, 2021 में जब रूस के राष्ट्रपति पुतिन भारत आए थे तब भारत में 6,01,427 रूसी एके-203 राइफलें बनाने का एमओयू हस्ताक्षरित हुआ। यही नहीं दोनों देशों ने सैन्य-तकनीकी सहयोग पर समझौते को और 10 साल के लिए बढ़ा दिया। देश के सेनाओं के पास आज जो हथियार हैं उनमें से करीब 85 फीसदी रूस के हैं। 
अमेरिका की यात्रा के बाद जब पीएम मोदी स्वदेश लौटे थे तब एकाध दिन में ही मोदी ने व्लादिमीर पुतिन को फोन किया था। इसमें दोनों नेताओं के बीच आपसी संबंधों को बेहतर बनाने को लेकर बात हुई थी। पुतिन ने इस दौरान पीएम मोदी के साथ रूस में वागनर ग्रुप के विद्रोह और यूक्रेन से जुड़ी जानकारी भी साझा की थी। मोदी ने अमेरिका यात्रा को लेकर पुतिन को बताया था। यहां पिछले साल अक्तूूबर में कैनबरा में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की प्रेस कान्फ्रेंस को लेकर बताना भी महत्त्वपूर्ण है। उनसे पूछा गया था कि क्या यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध को देखते हुए भारत रूस पर अपनी हथियार निर्भरता कम करेगा, तब जयशंकर का जवाब था कि भारत-रूस के संबंध दीर्घकालिक हैं।
जयशंकर ने यहां तक कहा था कि यूएसएसआर या उसके बाद रूस से खरीदे जाने वाले हथियारों की सूची काफी लंबी है। यह सूची समय के साथ लंबी हुई है, क्योंकि पश्चिमी देशों ने भारत को हथियारों की आपूर्ति नहीं की बल्कि उन्हें वास्तव में हमारे पड़ोस में एक सैन्य तानाशाही (पाकिस्तान) पसंद आई। जयशंकर ने पश्चिम पर यह कटाक्ष पाकिस्तान के साथ शीत युद्ध के दौरान संबंधों के आधार पर किया था।

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